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28 Feb 2023 · 1 min read

प्रेम-बीज

अहसास भी अजीब चीज है
उसकी कोई उम्र नहीं होती,
उसके चेहरे पर
कोई झुर्रियाँ नहीं गिरती।

वो चलता रहता है
उस वक्त तक बिना थके,
जब तक की
मौत नहीं लगती गले।

कोई चालीस वसन्त बाद
मन-मीत से हुई
संयोगवश सहसा मुलाकात,
बिन बोले ही कह गए
न जाने कितनी सारी
एक दूजे के मन की बात।

वैसी ही धड़कनें
वैसी ही चाहत,
वैसी ही कशिश
वैसी ही रुमानियत।

समय अन्तराल आयु रूप रंग
सबके प्रभाव से परे
प्रेम अब भी जिन्दा था,
मानो वक्त ने बर्फ बनकर
प्रेम के बीज को
फ्रिज कर दिया था।

– डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति

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