Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
27 Feb 2023 · 2 min read

पिता

पिता
*****
पिता को पढ़ना समझना
बहुत कठिन है
औलाद पिता को हिटलर और
बड़ा बेवकूफ समझती हैं
खुद को बुद्धिमान और
बहुत समझदार समझती हैं,
हम पिता के अंर्तमन में झांकना नहीं चाहते
पिता की औलाद के लिए चिंता ही नहीं
जद्दोजहद को पढ़ना नहीं चाहते
दिन रात कोल्हू के बैल की तरह
जुते बाप की भावनाओं का अहसास
हमें भला कब होता है
जरा सी कमी या इच्छा पूर्ति में देरी पर
हम कैसी उपेक्षा या दुर्व्यवहार करते हैं?
इसका हमें भान तक नहीं होता।
पिता जब तक जीवित रहता है
तब तक हम बेपरवाह ही रहते हैं,
हर समस्या का समाधान पिता में ही दिखते हैं।
पिता पर हमारी जिम्मेदारी है
पिता को इसका हमेशा ध्यान रहता है
पर औलादों के दिल में पिता के लिए
समुचित सम्मान नहीं होता है।
बीते जमाने का ज्ञान मत दीजिए महोदय
आधुनिकता की बेहूदगी भरी संस्कृति के दौर में
पिता बहुत परेशान, बदनाम और लाचार है
आप अपवादों की बात न कीजिए तो अच्छा है
आज हम ये कहां समझते हैं?
हम कितने भी बड़े हो जाएं
पिता जैसा आसमान नहीं होता
फिर भी पिता को इसका अभिमान नहीं होता।
मगर उसकी छाया में सुरक्षा का
हमें तनिक ज्ञान भी नहीं होता।
पिता का मतलब क्या हम तब समझते
जब हम खुद किसी औलाद के पिता होते हैं।
मगर तब तक पिता को तोड़ कर रख देते हैं,
समय पूर्व मृत्यु के द्वार तक पहुंचा देते हैं।
पिता सिर्फ पिता होता है,
उसकी जगह कोई और नहीं ले सकता
ये बात हमें बहुत देर में समझ में क्यों आता है।

सुधीर श्रीवास्तव
गोण्डा उत्तर प्रदेश
८११५२८५९२१
© मौलिक स्वरचित

Loading...