*पाठ समय के अनुशासन का, प्रकृति हमें सिखलाती है (हिंदी गजल/ गीतिका)*

पाठ समय के अनुशासन का, प्रकृति हमें सिखलाती है (हिंदी गजल/ गीतिका)
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1
पाठ समय के अनुशासन का, प्रकृति हमें सिखलाती है
ठीक समय पर सूरज उगता, और शाम हो जाती है
2
सुबह-सुबह हर रोज चहकना, सुनते हैं हम चिड़ियों का
कभी आलसीपन उठने में, चिड़िया कब दिखलाती है
3
हमने देखा लगातार, लहरों के उठने-गिरने को
कर्मशील दिनचर्या यह, सागर की हमें बताती है
4
क्षण-भर भी यदि हृदय धड़कना, भूले तो सोचो क्या हो ?
सॉंस हमारी इसी चक्र की, रोज बदौलत आती है
5
एक वर्ष में छह ऋतुओं की, सुंदर छटा बनाई है
सही चला यदि इनका क्रम, सर्वत्र संपदा छाती है
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451