क्या ग़लत मैंने किया

सोच समझ कर देखो,क्या ग़लत मैंने किया ।
जीवन मेरा था तो खुद ही फैसला लिया।
औरत हूं तो क्या सोचने समझने की शक्ति नहीं।
बढ़ रही हूं मंजिलों की तरफ,राह मैं भटकी नहीं।
खूब बातें और ताने जीवन में अब सह लिये
बहने थे जितने आंसू,आंख से वो बह लिए।
रोक न पाओगे मुझको,भरनी मुझको उड़ान।
बांह फैलाते उड़ जाऊं,नापना है आसमान।
ग़लती का पुतला है मानव,डर मन में बसाना नहीं
नमी शुरुआत करो कहीं से , लेकिन घबराना नहीं
सुरिंदर कौर