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31 Jan 2023 · 1 min read

ख्वाहिशों का अम्बार

आसुदा मिला कहाँ चाहतों से
किसी को अब तक।
बसर जितने में हो
उतनी ही दरकार है।
सोचता हूँ सब्र का दामन
पकड़ के रखूं क्योकि,
क़ल्ब में तमाम ख्वाहिशों का अम्बार है।
सतीश सृजन.

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