*झगड़े में पड़ी फिक्र तो, इंसान की पड़ी (हिंदी गजल/ गीतिका )*

झगड़े में पड़ी फिक्र तो, इंसान की पड़ी (हिंदी गजल/ गीतिका )
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1
मुझको न फिक्र हिंदू-मुसलमान की पड़ी
झगड़े में पड़ी फिक्र तो, इंसान की पड़ी
2
झगड़े में रोजगार है, चौपट गरीब का
नेता को चुनावी नफे-नुकसान की पड़ी
3
झगड़े में आम आदमी को जान की पड़ी
नेता को कुर्सियों की, घमासान की पड़ी
4
नेता जी वोट-बैंक, बढ़ाने में लग गए
कर्फ्यू था किन्तु, फिक्र बस मतदान की पड़ी
5
मुझको हरे-न केसरी पहचान की पड़ी
झगड़े में तिरंगे की, फिक्र शान की पड़ी
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उ.प्र.)
मो. 9997615451