उदासियां

इन आंखों की उदासियां,कौन पढ़ पायेगा।
हंसाने को झूठे चुटकले,कौन गढ़ पायेगा।
बेहद बेतरतीब हैं,सीढ़ी ये नाराजगी की
उनको मनाने आखिर,कौन चढ़ पायेगा।
खुशी से ले लिया, सर पर हर इल्ज़ाम
कोई नया इल्ज़ाम ,कौन मढ़ पायेगा।
सब साथ छोड़ते,चले गये जिंदगी में
अकेला शख्स आगे,कौन बढ़ पायेगा।
सुरिंदर कौर