*वोट फॉर हलवा 【हास्य व्यंग्य】*

वोट फॉर हलवा 【हास्य व्यंग्य】
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हलवे का एक विशेष महत्व होता है । हलवा सभी को पसंद है । सब चाहते हैं कि हलवा खाएँ। मगर जो बात मुफ्त के हलवे में है ,वह अपने पैसों से हलवा खरीद कर खाने में कहां है ?
चुनाव के मौके पर सबको हलवे की याद आती है । जो हलवा खिला दे ,कई लोग उसी को वोट देने के लिए दौड़ पड़ते हैं । यह भी नहीं देखते कि कल को यह आदमी हलवा खिलाने के बाद उनके साथ क्या सलूक करेगा ! नेता भला मुफ्त में हलवा खिलाते हैं ? नेताओं को स्वयं हलवा खाने से फुर्सत नहीं होती ,वह मतदाता को हलवा क्यों खिलाने लगे ? लेकिन फिर भी वोटर हलवे के चक्कर में पड़ा रहता है । जो पार्टी कहती है कि हम जीतने के बाद तुम्हें परात भर के हलवा खिलाएंगे, वोटर उसी की तरफ दौड़ पड़ते हैं ।
सच पूछो तो नेता से ज्यादा लालच मतदाता में भरा हुआ है । मतदाता की जो जेब चुनाव के बाद कटती है ,उसका मुख्य कारण मतदाता की ही लालची प्रवृत्ति है । अब जब मुफ्त का हलवा खाओगे तो कहीं से तो वसूल किया ही जाएगा ! चुनाव जीतने के बाद चार मुस्टंडे तुम्हारे घर पर हलवा देने आएंगे और तुम मना भी नहीं कर सकते। तुमने मांगा था और पार्टी ने वादा किया था। अब सरकार बन गई तो हलवा खाओ ।तुम्हारे घर के अंदर बिना कुंडी खटखटाए वह आएंगे और तुम्हें हलवा खिला कर जाएंगे ।
ज्यादा हलवे के चक्कर में मतदाता अपना ही नुकसान कर आता है । नेता को वायदा करने में क्या जाता है ? उससे कहो कि हलवे के साथ दस पूड़ी भी रोजाना भिजवाना पड़ेगी तो वह उसका भी वायदा कर देगा । आप अगर छह समोसे रोज मांगेंगे तो वह अगले पाँच साल तक उन्हें भी आपके घर पहुंचाने का वायदा कर लेगा ।
नेता को तो केवल वोट चाहिए । किसी तरह उसकी सरकार बन जाए ! फिर उसे मालूम है कि आपके साथ किस बेरहमी से पेश आना है और फिर आप कुछ भी नहीं कर सकते । आपको तो हलवा खाना था और वह आपको आपका मुंह खोलकर जबरदस्ती आपके घर में बैठकर हलवा खिलाएगा ।
बहुत पछताओगे ! भूल कर भी मत कहना कि वोट फॉर हलवा ।
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451