Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
23 Jan 2023 · 1 min read

ड़ माने कुछ नहीं

चलो लिखें एक कविता टेढ़ी,
भले हो जाये पंगा।
क ख ग घ बढ़िया हैं पर,
व्यर्थ है अक्षर ‘ड़’।

व्यंजन के सारे अक्षर का
होगा तो प्रयोग कहीं,
तो बचपन में क्यों पढ़ते थे,
ड़ माने कुछ नहीं।

हिंदी में पैंतीस व्यंजन हैं,
कहता खुल्लमखुल्ले।
पर वर्णों के कुल कुटुंब में,
अक्षर तीन निट्ठल्ले।

पहला ड़, दूजा ञ,
तीजा अक्षर ण ।
बने आलसी रहते घर में,
सकल व्याकरण काणा।

बड़ी मुश्किल से वरते जाते,
पड़े पड़े मुरझाते।
गलती से कभी किसी शब्द में,
निज मुकाम हैं पाते।

पोषित करना वर्ण में इनको,
इसलिए बहुत जरूरी।
व्याकरण महल तुरत ढह जाए,
सो रखना मजबूरी।

सतीश शर्मा सृजन, लखनऊ (उप्र)

Loading...