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18 Jan 2023 · 1 min read

हर इक सैलाब से खुद को बचाकर

हर इक सैलाब से खुद को
बचाकर के चले आए ।
अहम दिल के तो दरिया में
बहा करके चले आए ।।

जहां पर आचमन करने से
दिल के दाग धुलते हैं ।
उसी पावन त्रिवेणी में
नहा कर के चले आए ।।

कभी सर्दी कभी गर्मी
कभी दोपहर से गुजरे ।
नहीं मालूम है हमको
कब किस पहर से गुजरे ।।

अपने जीवन के रंजो गम
दबाकर अपने सीने में ।
लुटाया प्यार ही हमने
जहां जिस शहर से गुजरे।।

©अभिषेक पाण्डेय अभि

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