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12 Jan 2023 · 1 min read

गर्दिश -ए- दौराँ

ज़िंदगी की दौड़ में हम किधर निकल गए?
जो साथ अपने थे, हमसे बिछड़ते चले गए,
जो अपनी खुशियां हम पर लुटाते थे,
जो हमारा गम साथ मिल बांटते थे,
वो पल ज़ेहन में तस्वीर बनकर उभरते हैं ,
जिनमे हम अपने आप को भूलकर खो जाते हैं ,
माना कि ज़ीस्त का वह दौर
मुश्किलों भरा था,
फिर भी अपनों के साथ गुजारे वक्त का
मज़ा कुछ और ही था ,
चाहे खुशी हो या गम,
हम कभी अकेले ना रहे ,
अपनों का साथ था,
इसलिए मुश्किलों से लड़ते रहे,
तन्हाइयाँ हमें अब रास नहीं आती है ,
अपनों की याद हमें अब सताती है ,
दिन के उजालों में भी अब तीरगी का
एहसास होता है,
अब अकेलापन सालता है, जब कोई
पास नहीं होता है,
शायद एक दिन , हम भी फ़ना हो जाएंगे,
जो कुछ साथ है , उसे यहीं छोड़ जाएंगे ,
क़ुदरत पर कब किसका इख़्तियार है ?
कुछ तो आकर चले गए ,कुछ जाने को तैयार हैं,
ज़िंदगी का यह दौर चलता ही रहेगा,
वक्त की दहलीज़ पर ठहरा इंसां ,
आता- जाता ही रहेगा।

Language: Hindi
204 Views
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