Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
11 Jan 2023 · 1 min read

पिता की पराजय

पिता की पराजय
************

आज आँखे चमकी
गोद में था जो बेटा
आज जवान हो गया
कंधे तक आ गया अब
और आगे निकल गया
छोटा हुआ बाप मगर
क़िरदार बड़ा हो गया।।

जाने किस किस से बांटी
उसने यह लघु कथा अपनी
सिर उन्नत, गर्व से तना भाल
हाँ, आज, आज मैं हार गया।

बढ़ते सितारों को देखकर
आज चाँद भी मुस्कुराया
टूटा जो तारा कभी नभ से
सूर्य के आँचल में ही आया।।

थाम लिया गगन को उसने
ज्यूँ तर्जनी पर गोवर्धन हो
कर ले इंद्र कितनी ही वर्षा
चूर चूर घमंड उसका हो।

प्रतिस्पर्धा बाहर हो तो
पराजय कुलबुलाती है
कोई न रोके अश्व रथ ये
प्रार्थनाएं बुदबुदाती हैं।।

कांधे पर जब मैं रखता
हाथ उसके, शाबाशी का
भूल जाता जय पराजय
आभार प्रभु! तराशी का।।

है पिता का मोल इतना
हारूँ मैं, हर दिन हारूँ
बढ़ती रहे संतान मेरी
अहं को हर दिन मारूं।

मौन साधक वह प्यारा
नियति से कभी न हारा
आंधियों में दीप शिखा
सा, जलता रहा बेचारा

भोर हस्त मुट्ठिका में ले
चंद्र प्रहर तक पग नापे
पूनम हुई बेटियां जब
ग्रह नक्षत्र संग ही जागे

हर ऊंचाई छोटी लगी
बढ़ते परवाज के आगे
संतति संकल्प समझो
दूर सपने भी पास भागे।।

इस समर में कौन यहाँ
उन्नति से बढ़कर हुआ
एक तात है जो सदा ही
मरकर भी जीवित हुआ।।

सूर्यकान्त

Loading...