*ठंडक कल से ज्यादा आज पड़ी【हिंदी गजल/गीतिका】*

ठंडक कल से ज्यादा आज पड़ी【हिंदी गजल/गीतिका】
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रोज यही लगता है, ठंडक कल से ज्यादा आज पड़ी
रोज लबादा एक और, बढ़ जाता मुश्किल बहुत बड़ी
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घर से बाहर जाना, सर्दी में अब किसके बस में है
घर से निकलो, कोहरे की दीवार दीखती एक खड़ी
{3}
सूरज दादा कहीं दबा दुम, छिपकर बैठ गए हैं
सर्दी से केवल अंगीठी, छोटी- सी ही दिखी लड़ी
{4}
रेंग-रेंग कर दिन चलता है, रेंग-रेंग कर रातें भी
आफत की इस सर्दी में, यह लगता जैसे साँस अड़ी
{5}
कुछ ही दिन की बातें हैं, यह जाड़ों की तानाशाही
फिर मौसम मस्ताना होगा, फिर होगी खुशनुमा घड़ी
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रचयिता: रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उ.प्र.)
मो. 9997615451