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9 Jan 2023 · 1 min read

मैं औरत मेरा वजूद है कहाँ

मैं औरत मेरा वजूद हैं कहाँ
***********************

मैं औरत मेरा वजूद हैं कहाँ,
थककर हारी देख सारा जहां।

मायके से मैं ससुराल् आ गई,
छोड़ बाबुल घर-बार आ गई ,
खाली हाथों क्यों आई यहाँ।
मैं औरत मेरा वजूद है कहाँ।

मैं हूँ – बेटी,बहन-पत्नी सखा,
दादी-नानी-मामी-चाची बुआ,
भाभी-चाची-मौसी- ननद मॉ,
मैं औरत मेरा वजूद है कहाँ।

फूलों से है भरी डाली-डाली,
मैं ही हूँ घर आँगन की माली,
फिर भी हूँ पराई यहाँ – वहाँ।
मैं औरत मेरा वजूद है कहाँ।

चौबीस घंटे करूं रहूं चौकरी,
बिना तनख्वाह करूं नौकरी,
किस को कैसे बताऊं कहाँ।
मैं औरत मेरा वजूद है कहाँ।

सोहनजूही बेल सी अलबेली,
जीवन मेरा जैसे कोई पहेली,
सूना-सूना वीरान मेरा जहां।
मैं औरत मेरा वजूद है कहाँ।

यौवन से भरी हरीभरी पटारी,
हरमोड़ मैं देखूं खड़ा शिकारी,
जिस्मी रंग पाऊं जाऊं जहाँ।
मैं औरत मेरा वजूद है कहाँ।

आंचल मैं दूध आंखों मैं पानी,
सदियों से है मेरी यही कहानी,
कभी नहीं बदली कहीं व्यथा।
मैं औरत मेरा वजूद है कहाँ।

मनसीरत नारी अपमान नहीं,
औरत जैसा कोई महान नहीं,
छू नहीं पाए कहीं कोई बलां।
मैं औरत मेरा वजूद है कहाँ।

मैं औरत मेरा वजूद है कहाँ।
थककर हारी देख सारा जहां।
************************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

Language: Hindi
124 Views
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