खुशबू बन कर

खुशबू बन हम दर ब दर हो गये।
माथा पटकती एक लहर हो गये।
चुरा ले गये जो दीया मेरी कबर से,
पता करो, क्या उनके रौशन घर हो गये।
आंखों में जमी है, आंसुओं की नमी,
इस कदर हम तन्हा से बशर हो गये ।
चीख मेरी सुन न पाये जब वो किसी तरह,
और तीखे, और तीखे उनके खंजर हो गये।
सूख गये अब, जब मेरी आंख के आंसु,
सुना है अब उनके, दिल भी बंजर हो गये।
सुरिंदर कौर