ग़ालिब की दिल्ली, नई दिल्ली
यह शहर नहीं, धूल,धुआँ जाम, भीड़ की धोंकनी है.!
यहाँ के हर सख्स को बेमौत अपनी जान झोंकनी है.!!
दिल्ली का दिल अब लाल से काला हो चुका है.!
ग़ालिब यहाँ का हर सख्स बदनसीब हो चुका है.!!
दिल्ली के फेंफड़े धूल धुँआ धक्कड़ से दब रहे हैं.!
सड़क,गली,मोहल्ले,पार्क भीड़ वाहनों से चुक रहे हैं.!!
यमुना में कालिया नाग का पुनः बसेरा हो चुका है.!
जो पानी चख रहा है उसका जुहन्नम में सबेरा हो रहा है.!!
साँसे फूल रही है बुजुर्गों से ज्यादा नौनिहालों की.!
भूत रो रहा है वर्तमान मरने को मजबूर हो रहा है.!!
हवा काली और आसमान में कालिखों की परतें जमी हैं.!
सड़क पर हजारों चिमनीयाँ धुआँ फेंकते दिन-रात दौड़ रही हैं.!!
जरूरत नहीं बची हैं आक्रांताओं को यहाँ कत्ले आम करने की.!
यहाँ के ट्रैफिक जाम और धूल धुआँ ही आतंकवादी हो चुका है.!!
गंदगी के पहाड़ों को हथियार बनाकर हुकूमत चैन से सो रही है.!
तैमूर, अब्दाली, अंग्रेजों को दुर्गंध से रोकने का इतंजाम कर रही है.!!
ग़ालिब यहाँ पर हर हुकूमत का अपना शब्दबाग़ है.!
बाकी के बाग झुग्गियों मलिनता में तब्दील हो रहे हैं.!!
झुग्गियाँ बढ़ रही हैं, हर गाँव खाली हो रहा है.!
ग़ालिब दिल्ली का हर शहजादा दानवीर हो रहा है.!!
चाँदनी चौक को चाँद सितारे छोड़ कर जा चुके हैं,
वोट फ़रोसो के मुशायरे झूठ नफ़रत के लिए सज चुके हैं.!!
ग़ालिब अब नहीं रही दिल्ली जिसे तू देखकर शायर हुआ था.!
जिसे देखकर कर हिंदुस्तान का परचम परवाज़ हुआ था.!!
अब दावते सुख़न के नाम पर दावते नफ़रत के दफ़्तर खुल रहे हैं.!
नफ़रतों की खबरें फैल रही है और वोट फ़रोस शहजादे हँस रहे हैं.!!