Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
30 Dec 2022 · 1 min read

रावण का आचार्य होना (मरहटा छंद)

मरहटा छंद
10/8/11=29
अंत में गुरू लघु
रावण आचार्य
×××××××××××
रख आदर पूरा,लंका सूरा, सीता रथ बैठाय ।
बन विप्र सुपावन,साज
सुहावन,
मंगल मोद मनाय।1

सागर तट आया,अतिहरषाया,
दरश रामके पाय।
प्रभु कीन्ह प्रणामा,को उन सामा
शिष्टाचार दिखाय।2

गुरु क्या क्या चहिए,सो सब कहिए,
सफल कार्य हो जाय।
तुम क्या नहिं जाना,क्या बतलाना,
कह रावण मुस्काय।3

जो कमी तुम्हारी, विप्र पुजारी,
करे पूर्ति यजमान।

आसन अब डारें,काज सँवारें,
पुनः करो स्नान ।
अब बिन अविरामा, तिय पिय
वामा।
बैठो यही विधान ।4

मत हँसी उड़ावें,तिय कताई लावें, नहीं हमारे पास। 5

कुछ और उपाई,देउ बताई ,
विप्र न हो उपहास। 6

जो कमी तुम्हारी, विप्र पुजारी,
करे पूर्ति यजमान।
कब क्या सामग्री, लेकर अग्री,
अनुष्ठान का ध्यान। 7

चल पूजन पथ में,मैं खुद रथ
में,
लाया सिया बिठार।
आचार्य वही जो ,कमी रहे वो,
खले न विधि अनुसार। 8

हो परम सनेही,लख बैदेही।
छलके प्रभु के नैन ।
मुख वचन न आवा,अति सुख पावा,
गदगद करुणाऐन।9

बायें सिय रघुवर,पूजत हर हर,
अनुष्ठान सम्पन्न।
गुरु आशिष दीजे,दछिना लीजे।
हो मन परम प्रसन्न।10

मन उठे न शंका,जीतें लंका,
करें कृपा गौरीश।
हे विप्र शिरोमणि,ज्ञान महाफणि,
दीजे शुभ आशीष। 11

हो सफल कामना,जंग थामना,
मिले बराबर जीत।
लख सुर हरषावहिं,सुमन गिरावहिं,
ॠषि मुनि गावहिं गीत।12

अंतिम क्षण आवे,रण थल पावे।
निकलें जब भी प्रान ।
दछिना यह मांगे,आँखिन आगे,हों मेरे यजमान। 13

कर विप्र प्रणामा,बोलहिं रामा,
दछिना होवे पूर।
सिय रथ बैठाई,करी बिदाई,
विप्र मगन भरपूर। 14

जो विप्र मनावहिं,ते सुख पावहिं,
मिटहिं मोह संदेह।
यम मिटे त्रासना,मिटे वासना,
बढ़े राम पद नेह।15

गुरू सक्सेना
नरसिंहपुर मध्यप्रदेश
30/12/22

Loading...