Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
24 Dec 2022 · 1 min read

"मुट्ठी भर खुशियां"

मुठ्ठी भर खुशियां लेकर,
निकल पड़े बांटने को।

पीड़ा अपनी दे दो सारा,
सुख, चैन मेरा ले लो,
साध लगाए नयनों में,
निकल पड़े खोजने को।

मन में न अहंकार,
विधि का है विधान,
पर्वत से सरिता की धार,
निकलती है बिखरने को।

भेद-भाव, वाद-विवाद,
उत्पन्न मन में अविश्वास है,
जन कल्याण का संकल्प लिए,
चले जन-जन में प्रीत बढ़ाने को।

मुट्ठी भर खुशियां लेकर
निकल पड़े बांटने को।।

वर्षा(एक काव्य संग्रह)/ राकेश चौरसिया

Loading...