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23 Dec 2022 · 1 min read

तन मन के लोभी

तन-मन के लोभी
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यूँ सोचा न था कभी,
होंगे हम प्रेम-रोगी।

खड़े होंगे कतार में,
हो कर बांवरें वैरागी।

दर-दर ठोकरें खाई,
बनकर रमता जोगी।

ऐसी कौन-सी चीज,
अभी तक न भोगी।

तारुण्य यूँ देख कर,
तन-मन के हैं लोभी।

हाल ए दिल बेहाल,
खो गया कहीं योगी।

सच्ची है प्रेम भावना,
ज़रा भी नहीं ढोंगी।

रंगबिरंगी तितलियाँ,
मनभावन मनमौजी।

खोया-खोया सा रहूँ,
भाये न मिले जो भी।

मनसीरत मन भंवरा,
उड़ता नभ में खोजी।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
कहा राओ वाली (कैथल)

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