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20 Dec 2022 · 1 min read

चल पड़ते हैं कभी रुके हुए कारवाँ, उम्मीदों का साथ पाकर, अश्क़ बरस जाते हैं खामोशी से, बारिशों में जैसे घुलकर।

चल पड़ते हैं कभी रुके हुए कारवाँ, उम्मीदों का साथ पाकर,
अश्क़ बरस जाते हैं खामोशी से, बारिशों में जैसे घुलकर।
सहमी निगाहें हंस पड़ती हैं कभी, चमकती मुस्कराहट का अक्स देखकर,
उड़ जाते हैं कुछ पंछी भी, दर्द भरी यादों के पिंजरे तोड़कर।
नींदें आती नहीं कभी, अँधेरी रातों के सायों से डरकर,
किरणें सुकून की सुला जातीं हैं, फिर बातों से तेरी भरकर।
बेजुबां हो जाते हैं शब्द कभी, समंदर में तन्हा खुद को सोचकर,
सफर लकीरों का समझ आता है, हाथ तूफां में तेरा थामकर।
नम पड़ जातीं हैं ख्वाहिशें कभी, ठहरे मौसम की उदासी देखकर,
भर जाते हैं आँखों में उजाले भी, तेरे दिल में पनाह पाकर।
सितारे छोड़ जाते हैं आसमां को कभी, क्षितिज़ की सदायें सुनकर,
गूंज उठते हैं दो नाम एक साथ भी, सजदे में सर को झुकाकर।

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