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10 Dec 2022 · 1 min read

क्या लिखूं

गीत
कह दिया है सभी कुछ तो
क्या लिखूं मैं अब व्यथा
हर व्यथा के सामने है
अनकही मेरी कथा

हाथ में मौली बंधी है
आंख है अपनी ठगी
भाल पर मंगल तिलक है
हाट पर बोली लगी
हर वृथा के सामने है
अनकही मेरी कथा।।

खा रही है जिंदगी को
सांस दीमक की तरह
तेल अपने पी गए सब
एक दीपक की तरह
हर कुशा के सामने है ।
अनकही मेरी कथा।।

गीत, मुक्तक, छंद, गजलें
कोश कविता के गढे
हर विमोचन कह रहा है
पृष्ठ-पृष्ठ चेहरे पढ़े
हर प्रथा के सामने है
अनकही मेरी कथा।।

कह दिया है सभी कुछ तो
क्या लिखूं मैं अब व्यथा।।

सूर्यकांत द्विवेदी

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