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17 Jun 2025 · 1 min read

जन्मदिन स्पेशल

परम् आदरणीया मनोरमा जैन पाखी जी के अवतरण दिवस पर लिखी मेरी एक रचना उनको समर्पित……

मन मनोरम दृष्टि चंचल ।
कुञ्ज की पाखी अरी ! हूँ।।00

स्नेह के निर्झर में डूबी,
तूलिका को हाथ लेकर।
मैं अकेली चल रही हूँ,
हर्ष को भी साथ लेकर।
दृग पटों के बन्धनों में,
अश्रु सी जकड़ी परी हूँ।।

कुञ्ज की पाखी अरी! हूँ।।01

व्योम के बाहों में झूली,
कुन्ज की कुसुमित कली हूँ।
सद्य ये मकरन्द लेकर,
साँझ सी मानो ढली हूँ ।
काव्य लिप्सा में हूँ लिपटी
सोम से मैं अब भरी हूँ ।।

कुन्ज की पाखी अरी! हूँ ।।02

नव सृजन की लालसा ले,
नित नई राहें चली हूँ ।
मैं अकिंचन शब्द मंथन,
रात-दिन यूँ ही जली हूँ ।
श्रम समाहित सार-साधक,
स्वर्ण सी मानो खरी हूँ ।।

कुञ्ज की पाखी अरी! हूँ ।।03

लक्ष्य आँखों में लिए यूँ,
कर्मपथ अनुगामिनी सी।
शीत पुंज कुञ्ज कलरव,
पूर्णिमा की यामिनी सी ।
हो अमावस रात बेशक,
स्याह से मैं कब डरी हूँ ।।

कुञ्ज की पाखी अरी! हूँ ।।04

न कोई है राग मन में,
अब बसा वैराग्य मन में।
खुद से खुद प्रतिकार करके
न ही है नैराश्य मन में।
काव्य सृजन कुन्ज की तो
मैं लता बिल्कुल हरी हूँ ।।

कुन्ज की पाखी अरी! हूँ।।05

मन मनोरम दृष्टि चंचल
कुन्ज की पाखी अरी! हूँ ।।00

स्वरचित सादर समर्पित…….
हर्ष
आजमगढ़
यू पी

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