मजदूर का स्वाभिमान
पढ़ा लिखा हूं कम, मजदूर हूं बेबस लाचार हूं ।
दर्द मेरा कौन जाने, लोगों की नजरों में नाकाम हूँ ।।
रहने खाने सोने का, सामान सारा मैं बनाऊं ।
फिर भी लोगों की नजरों में हूं निकम्मा, न किसी के काम आऊं।।
लाखों दर्द लाखों धोखे, हैं दबाये सीने में।
मुझे भी इज्जत बख्शो, मुझे भी स्वाभिमान हैं।।
क्योंकि मैं परजीवी नहीं, एक मेहनतकश इंसान हूं।
लूटकर खाता नहीं, मेहनत की खान हूं।।
वक्त की मार पर, जोर किसी का चलता नहीं।
जो आया हैं सो जायेगा, मजदूर हूं पर मजबूर नहीं।।
दुनिया में लुटेरों की, इज्जत और मान हैं।
हम कमाकर खाने वाले, फिर भी क्यों अपमान हैं।।
सुई और जहाज भी , हम बनाने वाले हैं।
कौन याद रखेगा, कि हम चलाने वाले हैं।।
चमत्कार को देखना, दुनियाभर की फितरत हैं।
उस चमत्कार को करने वाले, हम मजदूर किसान हैं।।
लोधी श्यामसिंह राजपूत “तेजपुरिया”
कानपुर देहात उत्तर प्रदेश