*सुबह के सूर्य को देखो, नजर संध्या-सा आता है (मुक्तक)*

सुबह के सूर्य को देखो, नजर संध्या-सा आता है (मुक्तक)
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सुबह के सूर्य को देखो, नजर संध्या-सा आता है
उदय का अस्त से इस भॉंति, कुछ गहरा-सा नाता है
बुढ़ापा और बचपन गोद में पलता हुआ देखो
प्रकृति का चक्र अद्भुत रच रहा कैसा विधाता है
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451