बुढ़ापा ! न बाबा न (हास्य-व्यंग्य)

बुढ़ापा ! न बाबा न (हास्य-व्यंग्य)
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बुढ़ापा कौन चाहता है ? किसी से भी पूछ लो ,हर एक व्यक्ति यही कहेगा कि हम बूढ़ा नहीं होना चाहते हैं। लेकिन जवानी किसके साथ सदा रहती है ? चिर युवा तो केवल स्वर्ग में ही हैं, जहाँ देवता कभी बूढ़े नहीं होते । पृथ्वी तो मृत्यु लोक कहलाती है। यहाँ व्यक्ति जवानी के बाद अधेड़, उसके बाद बूढ़ा होता है और फिर उसकी मृत्यु हो जाती है । सौ साल का चक्र है ।उसके बाद समाप्ति । बूढ़े बनने से सभी को डर लगता है । न केवल इसलिए कि उसके बाद मृत्यु सामने दिखने लगती है बल्कि इसलिए भी कि वृद्धावस्था में शरीर एक बोझ बन जाता है ।
बुढ़ापे की उम्र आमतौर पर साठ साल मानी गई है । लेकिन कई लोग पचपन बल्कि पचास साल से ही बूढ़े होने लगते हैं । कई व्यक्ति ऐसे भी हैं जो सत्तर साल की उम्र तक भी बूढ़े नजर नहीं आते। नेता लोग अगर 80 और 90 के भी हो जाएँ, तो अपने को बूढ़ा नहीं समझते ।चुनाव लड़ने के लिए, पद लेने के लिए और मंत्री बनने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। बूढ़े से बूढ़े नेता को भी जब चुनाव का समय आता है तो जवानी सूझने लगती है और वह टिकट माँग कर चुनाव लड़ना चाहता है । काफी लोगों को यह बताया जाता है कि अब आप पिचहत्तर साल से ऊपर के हो गए हैं ,आप कृपया अपना बोरिया- बिस्तर बाँधकर यहाँ से निकल जाइए । भारत की राजनीति में केवल नानाजी देशमुख ही एकमात्र व्यक्ति हुए , जिनको मंत्री पद मिल रहा था और उन्होंने नहीं लिया। तथा उसके स्थान पर यह घोषणा की कि साठ वर्ष के बाद नेताओं को राजनीति से रिटायर हो जाना चाहिए। लेकिन उनकी बात किसी ने नहीं मानी। सब लोग राजनीति में आते हैं और फिर कभी बूढ़े नहीं होते ।
नौकरपेशा व्यक्ति जब रिटायर होता है , तब उसका अभिनंदन किया जाता है । बहुत से लोग सोचते हैं कि अब यह व्यक्ति आराम से जिंदगी गुजारेगा, पेंशन मिलती रहेगी और मजे लेगा । लेकिन दिनचर्या का नियम जैसे ही भंग हुआ , व्यक्ति दस साल बूढ़ा हो जाता है । यही पता नहीं चलता कि सूरज आठ बजे निकला या ग्यारह बजे निकला । पूरा दिन एक जैसा हो जाता है । कभी-कभी तो दोपहर के बारह बजे के बाद रिटायर्ड लोग नहाते हैं । वह भी इसलिए क्योंकि कोई टोकने वाला होता है । जिन लोगों को बुढ़ापा अकेले गुजारना पड़ता है उनकी स्थिति तो और भी दयनीय हो जाती है ।
आजकल छोटे परिवार हैं और प्रायः अगर लड़का पढ़ लिख गया तो निश्चित रूप से घर से बहुत दूर जाकर नौकरी करेगा । फिर वह मेहमान की तरह अपने पुश्तैनी घर में कभी कभी आ जाया करेगा । लड़कियाँ तो विवाह के बाद ससुराल की हो ही जाती हैं। यानि कुल मिलाकर पुराने घर में ले- देकर एक बुढ़िया और एक बूढ़े यही लोग जाते हैं । किससे बातें करें ,किस से माथा फोड़ें? बहुत से लोग बुढ़ापे में अपने बेटे बहू के पास जाकर रहना तो चाहते हैं मगर अन्दरखाने की असली बात तो यह है कि अक्सर बेटा नहीं चाहता कि उसके पास माँ-बाप रहें और प्रायः बहुएं नहीं चाहतीं कि सास- ससुर उनके घर पर आकर पड़ जाएं। लिहाजा बूढ़े- बुढ़िया खोखली हंँसी हँससे हुए अपने गृहनगर में पुश्तैनी घर में आस-पड़ोस वालों से यही कहते हैं कि हम कहाँ जा रहे है। हम लोग यहीं पर ठीक हैं ।लड़के के घर पर तो सुनसान कॉलोनी में फ्लैट के अंदर हमारा मन भी नहीं लगता ।असली समस्या तब आती है जब दो में से एक की मृत्यु हो जाती है और दूसरा जीवित रह जाता है । तब मजबूरी में वह सब होता है , जो उन दोनों के एक साथ जीवित रहते हुए शायद कभी नहीं हो पाता ।
बहुत से लोग पूरी जवानी में कोल्हू के बैल की तरफ पैसा कमाते रहते हैं। सोचते हैं कि जब बूढ़े हो जाएंगे, तब आराम से जिंदगी गुजारेंगे। पता चला, बूढ़े होने से पहले ही दुनिया से चल बसे । बहुत से लोग बुढ़ापे में आराम से जिंदगी गुजारना चाहते हैं, लेकिन बुढ़ापे में आराम नाम की कोई चीज नहीं रहती । इस उम्र में इतने रोग लग जाते हैं कि बिस्तर पर लेट कर भी परेशानी है, कुर्सी पर बैठे तो भी दिक्कत। कई लोग सोचते हैं कि जरा काम- धंधे से फुर्सत मिल जाए तब घूमेंगे । मगर बुढ़ापे में शरीर घूमने लायक कहाँ रहता है ? ट्रेन और बस में आ- जा नहीं सकते । कार से दो घंटे से ज्यादा की दूरी नहीं तय कर पाते हैं और पहाड़ पर तो चढ़ने का प्रश्न ही नहीं उठता। पैदल चलने में भी ज्यादा दूर की जगह है तो दिक्कत होती है क्योंकि बुढ़ापे में घुटने काम नहीं करते। कुल मिलाकर घर ही सबसे आरामदायक स्थान रह जाता है । वहीं पर लोग जीवन के बुढ़ापे को गुजारते हैं । बहुत से लोग अपना निजी मकान जब बूढ़े हो जाते हैं ,तब रिटायर होने के बाद बनवाते हैं । सारा जीवन किराए के मकान में बीता और जब अपना मकान बनवाया तब उसमें दो- चार साल भी पता चला, चैन से नहीं रह पाए। इलाज के चक्कर में अस्पतालों में घूमते रहे और फिर उसके बाद मृत्यु को प्राप्त हो गए ।
आम जनता जब बूढ़ी होने लगती है तब उसको अपने सिर के सफेद बाल देखकर बहुत चिंता होती है । लोगों को डर लगता है कि अरे हमारे सिर के सफेद बाल देखकर तो लोग हमको बूढ़ा समझ लेंगे। इसलिए बाल काले किए जाते हैं। बाल काले करने के चक्कर में बालों में केमिकल लगता रहता है ,जिसकी वजह से बाल और जल्दी सफेद होते हैं । कई लोग ऐसे हैं जिनको आप कभी तो देखोगे तो बिल्कुल काले बाल नजर आएंगे और कभी देखोगे तो उनके बाल पूरी तरह सफेद नजर आते हैं । यह सब बालों में डाई लगाने का परिणाम है। आदमी जब सिर में दर्द , चक्कर आना आदि एलर्जी का शिकार हो जाता है ,तब डाई लगाना बंद करता है । मगर तब तक पूरे बाल जरूरत से ज्यादा सफेद हो चुके होते हैं । खैर चलो बालों की सफेदी तो डाई लगाकर छुपाई जा सकती है लेकिन झुर्रियों का क्या किया जाए? चेहरे में जो कसावट 40 साल की उम्र में थी ,वह 60 में कैसे आए ? इसलिए बुढ़ापा वह बीमारी है ,जो छुपाए नहीं छुपती। नजर आ ही जाती है।
कई लोग परिस्थितियों से समझौता कर लेते हैं और वह अपने आपको “सीनियर सिटीजन” कहना शुरू कर देते हैं। सीनियर सिटीजन होने का बहुत फायदा है। ट्रेन में टिकट सस्ता मिल जाता है, बैंक में ब्याज ज्यादा मिलता है ।अगर कहीं लाइन लगी हुई है तो उसमें आपका नंबर पहले आ जाएगा। वह तो लोग सफेद बालों से खामखाँ परेशान रहते हैं ,वरना देखा जाए तो सफेद बाल होने से फायदा ही फायदा है। आपको बैठे-बिठाए सम्मानित कर दिया जाएगा क्योंकि आप बुजुर्ग नजर आते हैं। नवयुवकों को सम्मानित नहीं किया जाता। हमारे देश में आमतौर पर यह परंपरा है कि जब तक व्यक्ति के पाँव कब्र में न लटक जाएं, उसको सम्मान के योग्य नहीं माना जाता।
काफी लोग जब बूढ़े हो जाते हैं ,तब उनकी समझ में नहीं आता कि हम क्या काम करें । सबसे पहले तो बूढ़े व्यक्तियों को ईश्वर का आभारी होना चाहिए कि उनके जीवन में बुढ़ापा भगवान ने दिया। वरना कई लोग तो जवानी में ही भगवान के प्यारे हो जाते हैं और उन्हें बुढ़ापा देखने को भी नसीब नहीं होता। अब कम से कम बुढ़ापा क्या होता है, यह देखने का सुअवसर तो आया । ईश्वर को इसलिए भी धन्यवाद देना चाहिए कि बुढ़ापा आने के बाद भी हमारे हाथ पैर काम कर रहे हैं । हम चल पा रहे हैं, कानों से सुनाई दे रहा है ,आँखों से दिखाई दे रहा है। यह क्या कोई कम बड़ी सौगात है। जिन लोगों का हार्ट का ऑपरेशन नहीं हुआ है, वह ईश्वर को धन्यवाद दें। जिनके गुर्दे खराब नहीं हुए ,जिनका डायलिसिस नहीं होता ,जिनका गुर्दा प्रत्यारोपण नहीं हो रहा है -उन्हें ईश्वर को बारंबार धन्यवाद देना चाहिए। परमात्मा ने इतना कुछ हमें दे दिया है कि उसका जितना आभार प्रकट किया जाए ,कम है। बुढ़ापे में लोगों के पास केवल ले- देकर स्वास्थ्य ही एकमात्र धन रह जाता है। इसे बचा कर रखो और जीवन को सुखमय बना लो। जो उम्र के लिहाज से स्वस्थ है, समझ लो उसे बुढ़ापा आ कर भी बुढ़ापा नहीं आया।
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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