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15 Nov 2022 · 1 min read

खिल गया मन का कोना-कोना

खिल गया मन का कोना-कोना
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खिल गया मन का कोना-कोना,
दूर हुआ दुखी दिल का रोना।

कोशिशों ने भी मात ही खाई,
काम नहीं आया जादू – टोना।

कैसा भी हो बाहर का मौसम,
जीवन मे कभी उदास न होना।

दिल तो तेरे सरोकार कर दिया,
नाजुक दिल है कभी ना खोना।

कालचक्र का पहिया है घूमता,
भार गमों का धीरज से ढोना।

पाप-पुण्य की गठरी है भारी,
पाप को सदा अमृत से धोना।

मनसीरत मानवता का प्रेमी,
बीज नफ़ासत के सदा बोना।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)

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