मुझको तुम्हारा क्या भरोसा

कब तू बदल ले अपनी,
नियत और नीति,
अपना लक्ष्य और साथी,
क्यों दूँ तुमको नसीहत,
मानकर अपना करीबी,
क्यों करूँ तुमको प्यार,
करके यकीन तुम पर,
मुझको तुम्हारा क्या भरोसा।
क्योंकि मैंने देखा है,
हमेशा तुमको उड़ते हवा में,
बिना कोई खयाल किये,
किसी अभिमान और नशे में,
अपनी हद को पार करते हुए,
महलों के ख्वाब पालते हुए,
ललचाते हुए दौलत के लिए,
करते हुए सौदा जुबान का,
मुझको तुम्हारा क्या भरोसा।
कर सकते हो तुम तो,
मेरा ही खून कभी भी,
अपनी खुशी के लिए,
किसी के साथ कभी,
गले लगने के लिए,
किसी महफ़िल में तुम,
अपनी स्वतंत्रता के लिए,
मुझसे ज्यादा शौहरत के लिए,
ऐसे में क्यों पनाह दूँ तुमको,
मैं अपनी दिल और घर में,
मुझको तुम्हारा क्या भरोसा।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)