आज का मानव

अर्थ को अनर्थ से नष्ट करता हुआ,
तर्क को कुतर्क से भ्रष्ट करता हुआ,
सत्य को असत्य सिद्ध करता हुआ ,
यथार्थ को कल्पना ज्ञापित करता हुआ ,
पाप को पुण्य के समकक्ष करता हुआ ,
आस्था को अंधविश्वास का पर्याय कहता हुआ,
त्याग एवं बलिदान को स्वार्थ परक समझता हुआ,
संवेदनहीनता एवं उदासीनता को जीवन शैली
मानता हुआ ,
आतंक एवं क्रूरता को वीरता की श्रेणी में
लाता हुआ ,
विरोधाभासों के चक्र में उलझा हुआ ,
उन्नति से विमुख अधोगति अग्रसर होता हुआ ,
क्या आज का मानव मानवीय गुणों को परिभाषित कर सकेगा ?
या अपने कार्यकलापों से मानव को ही दानव की श्रेणी में ला छोड़ेगा ?