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18 Oct 2022 · 1 min read

बहकने दीजिए

* गीतिका *
~~
आज कदमों को बहकने दीजिए।
चाहतों को पंख लगने दीजिए।

है खुला आकाश नीला सामने।
मुक्त पाखी को विचरने दीजिए।

घिर रहे जब मेघ श्यामल हर तरफ।
अब जरा पानी बरसने दीजिए।

चोट लगती राह में रुकना नहीं।
वक्त के सब घाव भरने दीजिए।

कौन है ठोकर जिसे लगती नहीं।
अब स्वयं को भी सँभलने दीजिए।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य, १८/१०/२०२२
मण्डी (हिमाचल प्रदेश)

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