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14 Oct 2022 · 1 min read

मोबाइल का आशिक़

मोबाइल में सर को घुसाने लगा है
वो चलते हुए लड़खड़ाने लगा है

है लगता नहीं मन किताबों में उसका
रमी और पब जी चलाने लगा है

भले फीस कालेज का है अधूरा
वो गेमिंग में पैसे उड़ाने लगा है

दिवाना हुआ जबसे सेल्फी का यारों
नहाता नहीं था नहाने लगा है

वो यूँ रील का हो गया है दिवाना
कि ‌‌सारे जहाँ को भुलाने लगा है

है ‘आकाश’ खुद ही मोबाइल का आशिक़
ज़माने को कमियाँ गिनाने लगा है

– आकाश महेशपुरी
दिनांक- 12/10/2022

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