शेर
अहमकों की दुनिया में अक्ल की ज़रूरत क्या है,
महफिल में अंधों की दीद की ज़रूरत क्या है।
गुज़र गई हो ज़िंदगी जिसकी मुफलिसी में,
मौत के बाद उसके नाम खैरात की ज़रूरत क्या है।
माना कि हुई होंगी कभी तुमसे भी गलतियां,
मांग लो माफ़ी और पुरसुकूं हो जाओ,
ताउम्र उसे लेकर परेशां रहने की ज़रूरत क्या है।