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18 Sep 2022 · 2 min read

वतन की बात

आओ जरा बैठो तो सही, थोड़ी देर बतियाते हैं।
तुम करो मन की बात, हम करें वतन की बात।।
मिल जुल कर आओ सारे, उलझन सुलझाते हैं।
आओ जरा बैठो तो सही, थोड़ी देर बतियाते हैं।।

सुना है कि अब देश से, भ्रष्टाचार मिटने वाले हैं।
खादी, खद्दर, टोपी ने, खाये खांकि के निवाले हैं।।
खून सनि वर्दी का, क्यों दाग इन्हें दिखते नही।
पेंसन का मलाई सारे, चाट अपने उदर डालें हैं।।

फिर लिहाज़ का लिहाफ ओढ़, बेशर्म मुस्कुराते हैं।
आओ जरा बैठो तो सही, थोड़ी देर बतियाते हैं।।

चर्चा है जोरो पर कि, वह बासी रोटी खाते हैं।
तोड़ प्रोटोकॉल अक्सर, ऑटो से आते जाते हैं।।
आम आदमी के बीच, जो आम होना चाहते हैं।
वहीं आप अपनो के बीच, खास अपनी चलाते हैं।।

ऐसे बेईमानी के सबक, किससे सीख आते हैं।
आओ जरा बैठो तो सही, थोड़ी देर बतियाते हैं।।

और कहो हिन्दू-मुस्लिम, सिक्ख-ईसाईयों का का हाल है।
खबर मिला है कि आपस मे इनका, रोज कटता बवाल है।।
एक नई पौध कट्टरता की, जबसे है फली फूली।
भाईचारा डस के उसने, किया सबको बेहाल है।।

दिखे न अपनी सुलगती, घर औरो का फूंक आते हैं।
आओ जरा बैठो तो सही, थोड़ी देर बतियाते हैं।।

खा खा कर धोखा कितने, बन गए ग़ज़लकार है।
वो बेचारे पत्नी पीड़ित, रखते हास्य का भंडार है।।
पर राजनीति करे उपेक्षा, राष्ट्र की गरिमा को जब।
तो मौन हो जाते हैं क्यों, जो सच्चे कलमकार हैं।।

चलो खौफ़ को बेखौफ हो, आँखे दिखलाते हैं।
आओ जरा बैठो तो सही, थोड़ी देर बतियाते हैं।।

लालच अथवा द्वेष से, नही करना चाटूकारिता।
बन राष्ट्र के सजग प्रहरी, रखें निष्पक्ष सहभागिता।।
राष्ट्रहित हेतु रखना, तुम मर्यादा चौथे स्तंम्भ का।
कभी घुटने पर न ले आना, अपनी पत्रकारिता।।

बंद कलम खोल चल, अम्बर स्याह कर आते हैं।
आओ जरा बैठो तो सही, थोड़ी देर बतियाते हैं।।

©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित १९/०९/२०२२)

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