बदला नहीं लेना किसीसे, बदल के हमको दिखाना है।

बदला नहीं लेना किसीसे बदलकर हमको दिखाना है।
श्यामपुर नामक गांव में एक परिवार रहता था। उस परिवार में एक छोटा प्यारा सा बच्चा था। जिसका नाम था श्याम। उसकी माता का नाम था सावित्री। श्याम जब छोटा था तब उसके जन्म लेने के कुछ महीनों पश्चात ही उसके पिता का स्वर्गवास हो गया। पिता के स्वर्गवास के बाद सावित्री पर घर संभालने की जिम्मेदारी आई। पर चूंकि श्याम की माता धर्म व अध्यात्मिकता से जुड़ी हुई थी। तो उनका मनोबल अद्वितीय था। जहां अन्य लोग समस्याएं आने पर टूट जाते हैं। तो श्याम की मां सावित्री ने ऐसे विपरीत परिस्थिति में खुद को भी संभाला और उसी मजबूती के साथ श्याम को भी संभालने की जिम्मेदारी बखूबी निभाने लगी।
संघर्षों से भरे जीवन के कुछ दिन ऐसे भी बितते थे, जब सिलाई के कार्य से ज्यादा आमदनी ना होने के कारण उन्हें भूखे ही सोना पड़ता था। परीक्षा की घड़ी में श्याम की मां ने कभी हार नहीं मानी। क्योंकि उसे पता था जिस तरह रात के बाद दिन आता है। उसी तरह यह दुख के दिन भी कट जायेंगे। दुख के घने बादल छंटकर सुंदर सुखों का सबेरा भी जरूर आएगा।
श्याम की मां अपनी सिलाई कला का इस्तेमाल कर थोड़ा धन कमाना शुरू की जिससे की बहुत ही मुश्किल से घर के राशन और स्कूल की फीस के पैसे जुट पाते थे।
श्याम ने बचपन से ही इतने दुख देते थे की वह अकेला रहना ही ज्यादा पसंद करता था। श्याम के पास महंगे महंगे खिलौने नहीं थे। तो वह मां के साथ ही तरह तरह के खेल खेलकर अपना मनोरंजन किया करता। उसकी मां के लिए श्याम खिलौना था। जिसकी चहल पहल से घर पर रौनक बनी रहती थी। और श्याम के लिए उसकी मां खिलौना थी। श्याम और उसकी मां सावित्री दोनों परस्पर एक दूसरे के लिए खिलौने थे। जो एक दूसरे से खेलकर एक दूसरे का मनोरंजन आपस में करके शांतिपूर्ण जीवन जी रहे थे। श्याम के लिए उसकी मां ही संसार थी। तो मां को भी बेटे में सारा संसार नजर आता था।
माता ने एक स्कूल में पहली कक्षा में श्याम का दाखिला करवाया । श्याम को सावित्री प्रतिदिन स्कूल छोड़ने और लेने जाती थी। पहले वर्ष की परीक्षा में श्याम की मेहनत और उसकी माता का त्याग श्याम के रिजल्ट के रूप में सामने आया। श्याम कक्षा में अव्वल आया। जिसकी खुशी में सावित्री ने श्याम की पसंदीदा सारी चीजें बनाकर परमात्मा को भोग लगाकर फिर बेटे श्याम को खिलाया और साथ ही खुद भी खाई।
दूसरे वर्ष श्याम का उसी स्कूल में दूसरी कक्षा में दाखिला हुआ।
सावित्री – बेटा इस वर्ष से तुम स्कूल अकेले आना जाना करोगे। मुझे अपना समय सिलाई में लगाना है। जिससे की तुम्हारे बेहतर भविष्य के लिए मैं कुछ कमाई करके पैसे जुटाकर तुम्हारा दाखिला अच्छे बड़े से स्कूल में करवा सकूं।
श्याम – मां मुझे अकेले जाने से डर लगता है।
सावित्री अध्यात्मिक और धार्मिक प्रवृत्ति की थी। उसका भगवान पर बड़ा निश्चय था। वह नियमित रूप से गीता का पाठ पढ़ा करती थी। और धारणाओं में पक्की थी।
सावित्री – पता है श्याम महाभारत में अर्जुन की विजय इसलिए हुई क्योंकि स्वयं परमात्मा उसके साथ थे। अर्जुन श्रीमत पर चला। वहीं कौरवों की हार इसलिए हुई, क्योंकि शकुनी उनका मार्गदर्शक था। जिससे कौरव मनमत, परमत पर चले। परमात्मा की श्रीमत ही उनका साथ है, उनका हांथ है।
सावित्री बेटा श्याम यह जीवन भी एक महाभारत का संग्राम है। जिसमे कभी डर, कभी गरीबी, कभी भूख, कभी दुश्मन, कभी किन्ही चीजों का अभाव, कभी असफलता यह तरह तरह के कौरव हमसे लड़ने आयेंगे।
हमें भी श्रीमत पर चलकर परमात्मा को अपना साथी सदा अनुभव करना है। जिसका स्वयं परमात्मा साथी हो, उसे कोई हरा नहीं सकता। फिर सामने कौरव डर के रूप में आए या क्रोधी दुश्मन के रूप में श्रीमत पर चलने वालों का कोई बाल तक बांका नहीं कर सकता।
तो जब कभी तुम्हें डर लगे तब तुम यह सोचना की स्वयं परमात्मा मेरे साथ हैं। तो वह किसी ना किसी रूप में तुम्हे अपने साथ का अनुभव जरूर कराएंगे। और तुम्हारे जीवन में आए विघ्नों का विनाश करने की शक्ति तुम्हे देंगे या फिर किसी को निमित्त बनाकर विघ्नों का विनाश करेंगे।
सावित्री बेटा श्याम हमें बुरे कर्म करने से डरना चाहिए। बांक़ी इस संसार में किसीसे हमें डरने की जरूरत नहीं है। भगवान के बतलाए रास्तों पर चलने वाले निर्भय होते हैं। और तुम अपने को अकेला क्यों समझते हों, स्वयं परमात्मा जिसका साथी हो उससे ज्यादा ताकतवर कोई और इस संसार में नहीं।
श्याम दूसरे दिन अकेला ही स्कूल चला गया और घर से निकलते वक्त मां की कही बातें उसके मन में चल रही थी। वह परमात्मा को अपना साथी बनाकर अकेला ही चलता ही जा रहा था।
स्कूल में पीछे की बेंच पर बैठने वाले चार बच्चे (लाखन, सोनू, राजू और बिट्टू) श्याम को शांत मिजाज का सीधा साधा पाकर उसे बहुत तंग करने लगे।
कुछ दिनों तक वह सहता रहा। पर मां को वह यह सभी बात घर आकर नहीं बतलाता था। मामला और बढ़ता गया। वह बच्चे इसकी कभी टिफिन छीनकर खा जाते कभी उसके कपड़े गंदे कर देते, कभी उसे धकेल कर गिरा देते कभी उसे मार देते। पर श्याम खामोशी से सब सहता रहता था।
एक दिन श्याम को मां की कही वह बात याद आई की
(इमेजिनेशन)
सावित्री – बेटा श्याम यह दुनियां भी महाभारत के युद्ध का मैदान है। कभी कौरव क्रोधी दुश्मन के रूप में आयेंगे, कभी डर के रूप में, हमे बस हर परिस्थिति में परमात्मा को अपना साथी बनाना है।
श्याम ने मन ही मन परमात्मा से कहा की
श्याम – हे भगवान यह सभी क्रोध के वशीभूत होकर मुझ पर अत्याचार कर रहे हैं। और मैं श्रीमत का पालन करते हुवे इनके साथ हिंसा नहीं कर रहा हूं। अब इसमें मेरी जीत तो कहीं नजर नहीं आ रही, उल्टा मैं ही दुखी बन रहा हूं।
उसी रात श्याम के सपने में श्री कृष्ण आते हैं।
श्री कृष्ण बेटा श्याम तुमने इतने छोटे से उम्र में ही इतने दुख देखे हैं। यहां तक की जीवन के बड़े बड़े सार जो इंसान मरते दम तक नहीं सिख पाता उनको तुमने आत्मसात करके दिखलाया है। तुम अपने सत्कर्मों से खुद अपना ही भविष्य बहुत सुंदर गढ़ रहे हो। चिरंजीवी भव। विघ्न विनाशक भव।
दूसरे दिन शिक्षिका अटेंडेंस ले रही थी। एक एक करके वह सभी बच्चों के नाम पुकारती है।
श्याम मित्र गोलू से
श्याम – गोलू आज वह चारों शैतान कहां गए चारो एक साथ एब्सेंट हैं।
गोलू – गए होंगे कहीं मस्ती करने
श्याम को यह बात अजीब लग रही थी उसे किसी अनहोनी की शंका हो रही थी। श्याम यह सब सोच ही रहा था तभी।
चार लोग क्लास के सामने आकर मैडम को बुलाते हैं
यह चारों उन्हीं चारों बच्चे (लाखन, सोनू, राजू और बिट्टू) के पिता थे। वह सभी मैडम से वार्तालाप करने लगे। श्याम उनमें से कुछ के परिजनों को पहचानता था।
टीचर सभी बच्चों से
टीचर सभी बच्चे ध्यान दें। सभी स्कूल से घर जाते वक्त गांव की सड़क के किनारे किनारे चलकर जायेंगे कोई बीच में नहीं चलेगा। सब सीधा घर जायेंगे।
श्याम को रहा नहीं जाता अंततः वह टीचर से कह उठता है।
श्याम – ठीक है टीचर पर कोई घटना घटी है क्या ?
टीचर – हां लास्ट बेंच में बैठने वाले चार बच्चे (लाखन, सोनू, राजू और बिट्टू) स्कूल से घर जाते वक्त एक बैलगाड़ी के पहिए के नीचे आ गए। उनमें से किसी का हांथ टूट गया, किसी का पैर टूट गया, किसी का सर फूट गया, तो किसी को शरीर में बड़ी चोटे आई हैं। चारों को शहर के रामविलास हॉस्पिटल में भर्ती करवाया गया है। यह सुनकर श्याम सहम गया
श्याम घर पहुंचकर
श्याम मां से मां जानती हो मैं तुम्हे कोई बात बताना चाहता था पर हिचकिचाहट की वजह से बता नहीं पा रहा था। मेरे स्कूल में चार बच्चे (लाखन, सोनू, राजू और बिट्टू) जो मुझे रोज परेशान किया करते थे। जानती हो मां आज उनके साथ क्या हुआ है।
मां – क्या हुआ है
श्याम पूरी कहानी मां को बतलाता है।
श्याम – मां उन सभी का एक्सीडेंट हो गया है। और वह सभी शहर के रामविलास हॉस्पिटल में भर्ती हैं।
मां – बेटा श्याम हम दोनों कल सुबह ही उन सभी से मिलने हॉस्पिटल जायेंगे।
श्याम और सावित्री सुबह शहर के रामविलास हॉस्पिटल पहुंचते हैं। जहां लाखन, सोनू, राजू और बिट्टू चारों एक कतार से भर्ती थे। किसी की टांग टूट गई थी, किसी के हांथ टूट गए थे, किसका सिर फूट गया था।
श्याम के वहां पहुंचते ही एक बच्चे ने श्याम की ओर देखा और दूसरे को इशारा किया दूसरे ने तीसरे और तीसरे ने चौथे को सब श्याम की ओर माफी की निगाहों से देख रहे थे।
श्याम का हृदय अपनी मां की तरह विशाल था। श्याम ने मरीजों के लिए थैले में लाए फल को झट से थैले से निकालकर सबको देते गया।
श्याम – – लाखन, सोनू, राजू और बिट्टू लो यह फल
लाखन, सोनू, राजू और बिट्टू चारों ने श्याम से माफी मांगी
हमें माफ कर दो श्याम हमने तुम्हे बहुत सताया।
लाखन, सोनू, राजू और बिट्टू ने श्याम की मां से खुद ही अपनी गलती स्वीकार करते हुवे बतलाए की हम श्याम को बहुत परेशान किया करते थे। जिसकी सजा हमे मिली है। हमे माफ कर दीजिए।
श्याम की मां ने एक एक करके सभी बच्चों को गले से लगाया।
सावित्री लाखन, सोनू, राजू और बिट्टू तुम सभी ठीक हो जाओ फिर हम सभी साथ पिकनिक मनाएंगे।
इस तरह श्याम ने जैसे के साथ तैसा का व्यवहार ना करते हुवे। नन्हीं सी उम्र में भी अपकारी पर भी उपकार को परिभाषित अपने व्यवहार से परिभाषित किया। किसी से बदला नहीं लिया बल्कि सबको अपने गुणों की खुश्बू से बदलकर दिखा दिया।
दोस्तों इस कहानी का सार यही है। की अगर कोई हमसे दुर्व्यवहार करता है। तब हमें भी उसके साथ दुर्व्यवहार नहीं करने लग जाना चाहिए। इससे हममें और उनमें क्या अंतर रह जायेगा। हमसे कोई कितना भी दुर्व्यवहार करे हमें उनके साथ सद व्यवहार कर गुणों की खुशबू फैलानी है। अपकरी पर भी उपकार कर उनसे बदला ना लेते हुवे गुणों की खुशबू से उन्हे बदलकर दिखलाना है।
जय श्री कृष्ण।