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14 Sep 2022 · 1 min read

मुहब्बत का मसीहा

ओय सारिका,
दौलत के नशे में
तुमने मुझे
जब अपनाने से
इंकार किया
ख़ुद ही को
अपना यार बनाया
और ख़ुद ही से
मैंने प्यार किया…
(१)
जिस हुस्न को
ढूंढ़ा करता था
मैं तुम्हारी अदाओं में
जिस इश्क़ को
मांगा करता था
मैं अक़्सर दुआओं में
आंखें मूंद कर
अपने भीतर
एक शाम उसका
दीदार किया…
(२)
जो बात पहले
बस दिल में थी
आने लगी अब ग़ज़लों में
मेरे दर्द को
सारी दुनिया
गाने लगी अब नगमों में
अपने टूटे हुए
ख़्वाबों का
मैंने लफ़्ज़ों में
इज़हार किया…
(३)
वैसे तो तुम्हारे
आने का
वादा नहीं था कोई भी
मेरे साथ वक़्त
बीताने का
इरादा नहीं था कोई भी
फिर भी
कितनी बेताबी से
मैंने देर तक
इंतज़ार किया…
#Geetkar
Shekhar Chandra Mitra
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