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14 Sep 2022 · 2 min read

*धन्य वीरेंद्र मिश्र जी (कुंडलिया)*

धन्य वीरेंद्र मिश्र जी (कुंडलिया)
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कहना सिखलाया हमें , हिंदू – हिंदुस्तान
धन्य मिश्र वीरेंद्र जी , धन्य – धन्य अवदान
धन्य – धन्य अवदान , राष्ट्र के जागृत प्रहरी
समझ देश – अभिमान , विलक्षण पाई गहरी
कहते रवि कविराय ,सजग होकर सब रहना
झुके न माँ का शीश ,कलम का यह ही कहना
_________________________________
हिंदी साहित्य की सेवा न जाने कितने अज्ञात और विस्मृत साहित्य साधकों ने की है । अब उन्हें जानने वाले तथा उनके साहित्यिक योगदान को सराहने वाले कम ही रह गए हैं। किंतु उनका साहित्य अमर है और उससे जो प्रवाह फूटता है उसकी धारा का प्रवाह कभी लुप्त नहीं हो सकता। मुरादाबाद निवासी श्री वीरेंद्र कुमार मिश्र ऐसे ही कलमकार रहे हैं। आप में राष्ट्रीयत्व का भाव प्रबल था तथा साथ ही साथ भारत की सनातन हिंदू संस्कृति के प्रति गहरी निष्ठा और आदर विद्यमान था । आपने हिंदी साहित्य को जो नाटक प्रदान किए ,उनके विषय हमारे पुरातन गौरव बोध से भरे हुए हैं। छत्रपति शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह और आचार्य चाणक्य आदि महापुरुषों के स्वाभिमानी व्यक्तित्व को अपनी रचनाओं का केंद्र बनाकर आपने नाटक रचे, यही यह बताने के लिए पर्याप्त है कि आप की विचारधारा किस प्रकार से राष्ट्रीयत्व तथा हिंदुत्व से ओतप्रोत थी । आपका कहानी संग्रह पुजारिन की कुछ कहानियाँ मैंने पढ़ीं। तपस्विनी एक ऐसी ही कहानी थी जिसमें हिंदू राष्ट्र शब्द का प्रयोग करते हुए राष्ट्रीयत्व के भाव के पतन पर गहरा क्षोभ व्यक्त किया गया था। साथ ही एक ऐसी तपस्विनी का चरित्र कहानीकार ने उपस्थित किया जो आजादी की अलख जगाने के लिए स्वयं को समर्पित कर देती है।
वीरेंद्र मिश्र जी भारत की हिंदू संस्कृति के आराधक हैं । इस आराधना को नतमस्तक होकर प्रणाम करने की आवश्यकता है । इसी के गर्भ से वह स्याही हमें मिल सकेगी ,जिससे कलम कुछ स्वाभिमान से रससिक्त रचना रच पाएगी।
वीरेंद्र कुमार मिश्र जी का जन्म 1 जुलाई 1922 को मुरादाबाद में तथा मृत्यु 28 अप्रैल 1999 को हुई । 1948 से सेवानिवृत्ति तक आपने हैविट मुस्लिम इंटर कॉलेज, मुरादाबाद में अध्यापक के पद पर कार्य किया । आपके भीतर हिंदुत्व का अभिमान कूट-कूट कर भरा हुआ था। यह इसी बात से प्रमाणित होता है कि जब आपने एम.ए. में अंग्रेजी विषय के साथ प्रवेश किया तब एक ईसाई अध्यापक के साथ हिंदू धर्म के प्रश्न पर आपका मतभेद हो गया । इससे पूर्व आप हिंदी में एम.ए. कर चुके थे । इस मतभेद का परिणाम यह निकला कि आप अंग्रेजी में एम.ए. नहीं कर सके । तात्पर्य यह है कि आपकी प्रवृत्ति सत्य को सत्य कहने की थी और इसके लिए आपके भीतर एक जुझारू और संघर्षशील आत्मा सदैव विद्यमान रही। आप की पावन स्मृति को शत-शत प्रणाम।
साहित्यिक मुरादाबाद व्हाट्सएप समूह के माध्यम से एडमिन डॉ मनोज रस्तोगी ने आपके व्यक्तित्व और कृतित्व पर विशेष चर्चा का आयोजन दिनांक 10 सितंबर 2021 को आयोजित किया, जिससे आप के संबंध में विशेष जानकारी प्राप्त हुई। डॉ मनोज रस्तोगी जी का भी हृदय से आभार।
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लेखक : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451

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