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11 Sep 2022 · 1 min read

ग़ज़ल-धीरे-धीरे

धीरे-धीरे सब होगा
लेकिन जाने कब होगा

बीच भंवर में फ़ंसेगा तू
आगे-पीछे रब होगा

जिसकी रचना बेढंगी
ख़ुद कितना बेढब होगा

हाक़िम हंसकर बोला तो
कितना बड़ा ग़ज़ब होगा

वाइज़ और बदलाव की बात!
कोई और सबब होगा

बेमतलब वो आया है
कुछ ना कुछ मतलब होगा

-संजय ग्रोवर

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