*नियमानुसार कार्यवाही 【हास्य व्यंग्य】*
नियमानुसार कार्यवाही 【हास्य व्यंग्य】
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डाक से अधिकारी का पत्र आया था। लिखा था :- ” आपका लाइसेंस निरस्त किया जाता है । आपने नवीनीकरण के लिए नियमानुसार पत्राजात नियत समय में हमारे कार्यालय में जमा नहीं कराए।”
नीचे अधिकारी के हस्ताक्षर थे। हमारा तो पढ़कर दिल ही बैठ गया । अधिकारी नवीनीकरण पत्राजातों को किस प्रकार नजरअंदाज कर सकता है ? नियमानुसार जितने पत्रों की आवश्यकता थी, वह सब हमने फाइल में संलग्न करके भेजे थे । नियत समय पर सारा काम हुआ था । अब नवीनीकरण न करने का कोई कारण नहीं बनता था ।
हमने अधिकारी से मिलने का विचार बनाया । सारे पत्राजातों की एक प्रति और तैयार की । अधिकारी से शारी फाइल लेकर मिले । उससे कहा ” देखिए विधि के अनुसार हमने सारी कार्यवाही की है। अब आप नवीनीकरण को कैसे रोक सकते हैं ? ”
उसने कहा “आपने हर पत्र में अपने हस्ताक्षर काली स्याही से किए हैं जबकि मौलिकता प्रदर्शित करने के लिए उनका नीली स्याही से होना अत्यंत आवश्यक होता है।”
हमने आश्चर्यचकित होकर पूछा “तब यह बात आपको नियमावली में लिखनी चाहिए थी?”
अधिकारी ने मुस्कुराते हुए कहा ” हर बात नियमावली में थोड़े ही लिखी जाती है। कुछ बातें तो सब लोग खुद ही समझ लेते हैं।”
इस पर हमने अधिकारी के सामने प्रस्ताव रखा “आपके सम्मुख ही हम नीली स्याही से भी हस्ताक्षर कर देते हैं। तब तो नवीनीकरण हो जाएगा ?”
वह बोला “आप नए सिरे से कागज तैयार करके लाइए । तब देखूंगा।”
हमने नीली स्याही के हस्ताक्षर वाले कागज नए सिरे से टाइप करके तैयार किए। अधिकारी के पास पहुंचे । कहा ” महोदय अब तो नवीनीकरण हो जाएगा ।”
वह मुस्कुराते हुए बोला ” प्रश्न केवल नीली और काली स्याही का नहीं होता । बात यह है कि आपने अपने पते में जिले के आगे प्रांत भी नहीं लिखा है । अब यह कैसे पता चलेगा कि आप किस प्रांत के हैं ? ”
हमने कहा ” महोदय जब एक ही प्रांत के अंतर्गत सारी कार्यवाही चल रही है ,तब प्रांत लिखने, न – लिखने से क्या फर्क पड़ता है ?”
वह बोला “फर्क तो नहीं पड़ता लेकिन फिर भी कागज का पेट भरना पड़ता है। आपने नहीं भरा । अब भर दीजिए।”
हमने निराश होते हुए कहा “तो क्या कागज दोबारा से तैयार किए जाएंगे ?”
वह कुछ रहस्यमयी मुस्कान के साथ इस बार कहने लगा “हां यह तो करना ही पड़ेगा । चूक आपकी तरफ से हुई है ।”
हमने पूछा “जो – जो करना पड़े ,वह आप सब एक साथ बता दीजिए । ऐसा तो नहीं कि हम अपने जिले के आगे प्रांत का नाम लिखकर आए और फिर आप कहने लगे कि आपने इसके आगे भारतवर्ष नहीं लिखा है और हमें फिर से नए सिरे से कागज तैयार करने पड़ें ? ”
वह हँसते हुए बोला ” नहीं नहीं । हम तो आपकी सेवा के लिए ही बैठे हैं । भला हम आपके पत्राजातों का नवीनीकरण क्यों नहीं करेंगे ?”
मरता क्या न करता ! हमने फिर से सारे कागज नए सिरे से टाइप करवाए । जिले के आगे ध्यान देकर प्रांत का नाम लिखा। हस्ताक्षर इस बार फिर से ध्यान पूर्वक नीली स्याही में किया । सारे पत्रजातों को लेकर अधिकारी के पास पहुंचे । प्रस्तुत किए। निवेदन किया :- ” महोदय अब तो नवीनीकरण कर दीजिए ।”
उसने सारे पत्राजातों को देखा और कहा “आप को विलंब – शुल्क भी तो जमा करना था ? ”
हमने कहा “आपने तो यह नहीं बताया ?” उसने कहा “यह कोई बताने की बात थोड़ी होती है ! नवीनीकरण शुल्क जमा किए हुए आपको नियत तिथि से काफी समय बीत चुका है । अब तो आप विलंब की श्रेणी में आ चुके हैं वह भरिए और उसके बाद पत्राजात आप हमारे सामने ले आइए। हम नवीनीकरण कर देंगे । ”
गुस्सा तो बहुत आया । अधिकारी हमें टहला रहा है ,यह बात भी हम समझ गए । बाहर आकर मालूम किया । दफ्तर में बाबू ने सहानुभूति के साथ बताया ” इस बार विलंब शुल्क की बात हुई होगी ? कौन सा चक्कर चल रहा है ?? ”
हमने कहा “तीसरा चक्कर है ! ”
वह बोला “कम से कम सात – आठ चक्कर लगेंगे । अगर सारे काम आप सही करते रहे तो उसके बाद नवीनीकरण होने की संभावना है।”
हमने बाबू से कहा “जब हम अधिकारी के द्वारा बताए गए हर कार्य को विधिवत पूरा कर रहे हैं, तब वह हमारे कार्य में विलंब कैसे कर सकता है अथवा हमारे कार्य को करने से इनकार भी कैसे कर सकता है ? ”
बाबू ठहाका मारकर हँसा और कहने लगा ” अफसर आपके साथ यही तो कर रहा है । ”
हम खिसियाकर रह गए । सचमुच अधिकारी हमारे कार्य को करने में विलंब भी कर रहा था तथा करके भी नहीं दे रहा था।
खैर, इस बार हमने विलंब-शुल्क भी जमा किया और तत्काल सारे पत्राजात लेकर अधिकारी के पास पहुंच गए । उसकी मेज पर कागज पटके और कहा “अब आप हस्ताक्षर कीजिए और हमारा नवीनीकरण पत्र बनाकर हमें सौंप दीजिए ।”
अधिकारी कहने लगा “आज आपने सारे पत्र तैयार करके हमें सौंपे हैं। अब हम फाइनल रूप से उनका परीक्षण करेंगे और उसके बाद आपको नवीनीकरण पत्र दे दिया जाएगा ।”
हमने क्रोधित होकर कहा “अब जांच का विषय रह ही कहाँ गया है ? सब कुछ तो आप जांच कर चुके हैं ।”
अधिकारी ने बहुत आहिस्ता से हमें बताया ” हर कार्य की एक निश्चित प्रक्रिया होती है ,जांच का विधान होता है। इससे हटकर हम जल्दबाजी में कोई निर्णय नहीं ले सकते। आप अगले सप्ताह आ कर मिल लीजिए। ”
हम अजीब मुसीबत में फँस चुके थे। हमने कहा ” ठीक है, हम अगले सप्ताह आ जाते हैं । लेकिन उसके बाद एक मिनट की भी देर नहीं होनी चाहिए। आप हमें परेशान कर रहे हैं ।”
अधिकारी ने कहा ” हम केवल आपकी सेवा के लिए उपस्थित हैं । आपका कार्य शीघ्रता से पूर्ण हो,, इसी में हमारी संतुष्टि है।”
हमें पता था यह एक रटा-रटाया वाक्य है, जो तोते की तरह दोहराया जा रहा है । मजबूर होकर हम फिर वापस चले गए । एक सप्ताह बाद फिर अधिकारी के कार्यालय में आए । अधिकारी बैठा हुआ था। हमने कहा ” हमारा नवीनीकरण प्रमाण पत्र तुरंत दे दीजिए । हम बहुत चक्कर काट चुके हैं । अधिकारी ने अपने चेहरे पर मायूसी का नकाब ओढ़ा और बोला “क्या करें ! आज दफ्तर में बाबू अन्य आवश्यक कार्यों में व्यस्त हैं । आप तीन दिन बाद आकर पता कर लीजिए ।”
“अब हम कब तक धैर्य रखें ? “हमने कहा। ” हम आपकी शिकायत आपके उच्च अधिकारियों से करेंगे । वह आपको जरूर मजा चखाएँगे । इस तरह से तो आप अपनी शक्तियों का दुरुपयोग करते हुए मनमानापन कर रहे हैं ।”
अधिकारी ने कहा “मैं आपका कार्य नियमानुसार देख रहा हूं।आपको यदि कोई शिकायत है तो निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार कार्यवाही करने के लिए स्वतंत्र हैं ।.आपका स्वागत है । “उसके बाद उसने हमें नमस्ते कर दी, जिसका अर्थ यही था कि अब और बहस की अनुमति नहीं है ।
हम उच्च अधिकारी से मिले ।.उनको पूरी फाइल सौंपी और कहा ” मान्यवर ! आपका कनिष्ठ अधिकारी जानबूझकर मनमाने आदेश पारित करके हमें परेशान कर रहा है । आप इसको सस्पेंड करिए ।”
उच्च अधिकारी सस्पेंड शब्द को सुनते ही मानो कुर्सी से उछल पड़ा। कहने लगा “इस तरह की संसदीय भाषा का प्रयोग आप कार्यालय में बैठकर कैसे कर सकते हैं भला किसी ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अधिकारी को सस्पेंड किया जाता होगा ?आप की प्रक्रिया में कुछ देर हो रही है । यह स्वाभाविक होता है आपको धैर्य रखना चाहिए इस प्रकार का उतावलापन लोकतंत्र में शोभा नहीं देता।”
स्थिति उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे वाली हो गई थी। हमने कहा “फिर हमारी शिकायत पर आप क्या निर्णय लेने जा रहे हैं ?”
अधिकारी बोला “आपका काम शिकायत करना है । मेरा काम शिकायत सुनना है और प्रक्रिया का आपके संबंध में उचित निर्णय लेकर शीघ्रता से आपको अवगत कराना है । ”
हमने उतावले होकर कहा “तो अवगत कराइए ना । इसमें इतनी देर क्यों हो रही है ?”
उच्च अधिकारी ने कहा ” यही तो कमी है । आजकल के दौर में लोग ट्वंटी- ट्वंटी का मैच देखने की मानसिकता के साथ आते हैं। जबकि ऐसा नहीं होता । आपने जो शिकायत की है, उसके संबंध में अधीनस्थ अधिकारी से स्पष्टीकरण मांगेंगे । फिर उसके बाद में विषय जांच समिति के सामने प्रस्तुत होगा ।जांच समिति उचित समय पर इस संबंध में अधिकारी के जवाब की वैधता पर विचार करेगी । तदुपरांत आपको पुनः सुनवाई का अवसर दिया जाएगा। उसके बाद भी यह जरूरी नहीं है कि जो आप कहें, हम उसे ज्यों का त्यों स्वीकार कर लें। अधीनस्थ अधिकारी को कम से कम एक मौका और दिया जाएगा।”
अब हम दफ्तर के कुचक्र को समझ गए थे। हमने कहा ” ऐसे तो हम युवावस्था से वृद्धावस्था की ओर प्रस्थान करने लगेंगे तथा हमारा केस सुनवाई के अंतिम चरण पर भी नहीं पहुंच पाएगा ।ँ
“हमें आपसे सहानुभूति है ।”उच्च अधिकारी ने कहा “मैं समझ रहा हूँ। आप कितने परेशान हैं ! आप हमारे कार्यालय के बाबू से मिल लीजिए। उसका रेट यद्यपि अधीनस्थ कर्यालय की तुलना में दोगुना है,
लेकिन फिर भी आपका कार्य अवश्य हो जाएगा । ”
हम समझ गए कि हमने अधीनस्थ अधिकारी की शिकायत उच्च अधिकारी से करके अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मारी है। अब हमें दुगनी रिश्वत देनी पड़ेगी तब हमारा कार्य हो पाएगा।”
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लेखक : रवि प्रकाश
बाजार ,सर्राफा
रामपुर,( (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 9997615451