*अच्छे लगे त्यौहार (गीत)*

अच्छे लगे त्यौहार (गीत)
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अच्छे लगे त्यौहार, बच्चे आ गए
(1)
हर ट्रेन में थी भीड़-भारी चल रही
वेटिंग बहुत ज्यादा सभी को खल रही
‘कन्फर्म’ बस अन्तिम क्षणों में पा गए
(2)
आजीविका की ही वजह से दूर हैं
सब आधुनिक इस दौर में मजबूर हैं
दो कौर सुख-परिवार,सारा खा गए
(3)
साथ में बैठे-हँसे-महफिल जमी
असली यही दीपावली-जन्माष्टमी
यों रंग-चटकीले हदय को भा गए
अच्छे लगे त्यौहार, बच्चे आ गए
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दो कौर= रोटी के टुकड़े
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रचयिता:रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 99976 15451