*उर (कुंडलिया)*
उर (कुंडलिया)
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उर में किसके क्या बसा ,सोचो किसको ज्ञात
होठों से जब तक नहीं ,खुल कर आती बात
खुल कर आती बात ,आँख भी बोला करती
कंपन मतलब प्यार ,कभी बतलाता डरती
कहते रवि कविराय ,जिंदगी उनकी सुर में
जिनमें भेद न व्याप्त ,होंठ की बोली उर में
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उर = हृदय
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रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451