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29 Aug 2022 · 1 min read

✍️कोई नहीं ✍️

ना जाने कैसा सफर है ज़िंदगी का,
मिलते हज़ारों है पर पास कोई नहीं,
बस झूठी भीड़ हैं चारों तरफ़,
कितना अजीब है ना,
चलता कारवाँ है पर साथ कोई नहीं।

✍️वैष्णवी गुप्ता
कौशांबी

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