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20 Sep 2022 · 1 min read

मुख़ौटा_ओढ़कर

#मुख़ौटा_ओढ़कर

रोज-रोज मेरे सपनों में, तुम आने लगी थी /

नये-नये ख़्वाब , ख़्वाबो में सजाने लगी थी //

मुख़ौटा ओढ़कर करीब आना हुआ उनका

ना जाने क्यू इश्क़ मेरा आज़माने लगी थी //

मुख़ौटे पे मुख़ौटा लगाकर दिया धोख़ा ही

फिर नया मुख़ौटा लगा हमे मनाने लगी थी//

जान चुके थे जाँ किया नही था प्यार हमसे

आड़ मुख़ौटे का लेकर हमे रुलाने लगी थी//

हर बात भुलाकर संग उनके बढ़ने लगा था /

पर वो तो मुख़ौटे पे मुख़ौटा चढ़ाने लगी थी //

स्वरचित / मौलिक
©® प्रेमयाद कुमार नवीन
जिला – महासमुंद (छः ग)

Language: Hindi
1 Like · 404 Views
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