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26 Aug 2022 · 1 min read

शुभ सवेरा

कल कल सुर में गाती नदिया
सुबह सुबह इतराती है
गुंजन करती चिड़िया देखो
नभ में जा इठलाती है ।

पाती तरुओं पर लहराकर
मानों ताल लगाती है
देख धरा पर किरण सुनहरी
माटी भी मुस्काती है ।

सुखद सुहाना रूप भोर का
पहन दिवा सज जाती है
ठहर न पाती अब नयनों में
निंदिया मुँह छिपाती है ।

डॉ रीता सिंह
चन्दौसी (सम्भल)

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