Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
26 Aug 2022 · 1 min read

*चार दिवस का मेला( गीत )*

चार दिवस का मेला( गीत )
“””””””””””””””””‘””””””””””””””””””””””””””””””
चार दिवस की काया सबकी चार दिवस का मेला
(1)
बचपन बीता गई जवानी फिर बूढ़े कहलाए
टूटे दाँत झुर्रियाँ आँखों पर चश्मे चढ़ आए
सजी स्वर्ण- सी देह रह गई बस मिट्टी का ढेला
(2)
चार दिवस डुगडुगी बजाकर मजमा खूब लगाया
चार दिवस कुछ मिली वाहवाही खोया कुछ पाया
चार दिवस की रही भीड़ फिर जाता राह अकेला
(3)
जन्म लिया था बिना वस्त्र के कफन ओढ़कर जाता
घटता और न बढ़ता धन सब धरती का कहलाता
चार दिवस की खेल जिंदगी चार दिवस बस खेला
चार दिवस की काया सबकी चार दिवस का मेला
“”””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””””
रचयिता : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99 97 61 5451

Language: Hindi
Tag: गीत
474 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all

You may also like these posts

रुसवा दिल
रुसवा दिल
Akash Yadav
दोहा त्रयी. . . . .
दोहा त्रयी. . . . .
sushil sarna
बुलंदी पर पहुँच जाना
बुलंदी पर पहुँच जाना
Neelofar Khan
बे'वजह - इंतज़ार कर लेते।
बे'वजह - इंतज़ार कर लेते।
Dr fauzia Naseem shad
गुलाम
गुलाम
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
जिस पर हम ध्यान देना छोड़ देंगे उसका नष्ट होना स्वभाविक है, फ
जिस पर हम ध्यान देना छोड़ देंगे उसका नष्ट होना स्वभाविक है, फ
ललकार भारद्वाज
एक वो भी दौर था ,
एक वो भी दौर था ,
Manisha Wandhare
Peace peace
Peace peace
Poonam Sharma
'डमरु घनाक्षरी'
'डमरु घनाक्षरी'
Godambari Negi
"अकेडमी वाला इश्क़"
Lohit Tamta
चूल्हे की रोटी
चूल्हे की रोटी
प्रीतम श्रावस्तवी
स्त्रीत्व समग्रता की निशानी है।
स्त्रीत्व समग्रता की निशानी है।
Manisha Manjari
मुहब्बत इम्तिहाँ लेती है...
मुहब्बत इम्तिहाँ लेती है...
Sunil Suman
दरख्त
दरख्त
पूनम 'समर्थ' (आगाज ए दिल)
मंत्र :या देवी सर्वभूतेषु सृष्टि रूपेण संस्थिता।
मंत्र :या देवी सर्वभूतेषु सृष्टि रूपेण संस्थिता।
Harminder Kaur
लफ्ज़ भूल जाते हैं.....
लफ्ज़ भूल जाते हैं.....
हिमांशु Kulshrestha
दोस्त न बन सकी
दोस्त न बन सकी
Satish Srijan
संसार एवं संस्कृति
संसार एवं संस्कृति
सोलंकी प्रशांत (An Explorer Of Life)
लघुकथा - अनबन
लघुकथा - अनबन
जगदीश शर्मा सहज
माँ
माँ
शालिनी राय 'डिम्पल'✍️
नशे से बचो
नशे से बचो
GIRISH GUPTA
दरवाजों की दास्ताँ...
दरवाजों की दास्ताँ...
Vivek Pandey
खुद की एक पहचान बनाओ
खुद की एक पहचान बनाओ
Vandna Thakur
मेरी पावन मधुशाला
मेरी पावन मधुशाला
Rambali Mishra
भजभजन- माता के जयकारे -रचनाकार- अरविंद भारद्वाज माता के जयकारे रचनाकार अरविंद
भजभजन- माता के जयकारे -रचनाकार- अरविंद भारद्वाज माता के जयकारे रचनाकार अरविंद
अरविंद भारद्वाज
दूरियाँ जब बढ़ी, प्यार का भी एहसास बाकी है,
दूरियाँ जब बढ़ी, प्यार का भी एहसास बाकी है,
Rituraj shivem verma
"ऐनक"
Dr. Kishan tandon kranti
और हो जाती
और हो जाती
Arvind trivedi
ग़ज़ल
ग़ज़ल
आर.एस. 'प्रीतम'
♥️ दिल की गलियाँ इतनी तंग हो चुकी है की इसमे कोई ख्वाइशों के
♥️ दिल की गलियाँ इतनी तंग हो चुकी है की इसमे कोई ख्वाइशों के
अश्विनी (विप्र)
Loading...