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25 Aug 2022 · 1 min read

✍️हम अहल-ए-वतन✍️

✍️हम अहल-ए-वतन✍️
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कौन चाहता है ज़मी पे शोर शराबा हो
हम अहल-ए-वतन में ये खूनखराबा हो

गर ज़ियारत करके वो मिले तो ढूँढ लो..!
किसने कहाँ के काशी में भी काबा हो

ये मंदिर मस्जिद तो है इस हँसीन जहाँ में
कश्मकश में कही इंसानियत ना तबाह हो

खिज़ा का कोई मौसम अब ख़ुश्क है यहाँ..!
बागबाँ नहीं चाहता मुश्किल में खियाबा हो

इँसा वो बे-नज़ीर है जो इँसा की तासीर है
वतन के खातिर इँसा का क़ुर्बान जज्बा हो
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✍️”अशांत”शेखर✍️
25/08/2022

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