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22 Aug 2022 · 1 min read

मरहम नहीं बस दुआ दे दो ।

दर्द से कराह रहे हो अब,
चोटे बहुत खाई है तुमने,
भूल कर इंसानियत कर्मो में,
अनेकोंं के दिल दुखाये है,
सोचा नहीं स्वार्थ में एक पल भी,
अपनी ही पोटली सजाई है,
छीन कर लाचारो का भोजन,
बेसहरो का फायदा उठाया है,
अपनी खुशी के लिए अंधे बन गये,
लालच में भी रुलाया है ,
रह गई न कोई कसर बाकी,
हकीकत का वो जीवन सफर नहीं अपनाया है,
सैय्या पर लेटे हो बेहाल,
अंत समय की पड़ी है मार,
मरहम के लिए कर रहे हो इंतजार,
घाव भरने की नादान कोशिश जारी है,
जीवन गुजारा है विकारों के साथ,
पुण्य का कोई अंश नहीं जाग्रत है,
आंँखे बंद करके मांँगो सिर्फ पश्चाताप,
मरहम नहीं बस दुआ दे दो।

रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।

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