*खुद को महान समझने वाले लोग ( हास्य व्यंग्य)*

खुद को महान समझने वाले लोग ( हास्य व्यंग्य)
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कुछ लोगों को अपने महान होने का हर समय एहसास होता रहता है । ऐसे लोग परम ज्ञानी होते हैं । एक क्षण के लिए भी उनके दिमाग से यह बात नहीं जाती है कि वह महान हैं। जब सामने वाला उनसे बात करता है , तब वह निरंतर इस बात का बोध स्वयं भी करते हैं तथा सामने वाले को भी कराते रहते हैं कि वह महान हैं तथा एक तुच्छ प्राणी से उनकी बातचीत हो रही है । सामने वाला अगर उनको महान नहीं समझता अथवा अज्ञानतावश कभी-कभी उनसे बात करते समय यह भूल जाता है कि वह महान व्यक्ति से बात कर रहा है , तब वह महान व्यक्ति उसको तुरंत इस बात का ज्ञान करा देते हैं कि वह महान हैं।
महान होना इतनी महत्वपूर्ण बात नहीं है ,जितना कि खुद को महान समझना । जब तक आदमी अपने आप को महान नहीं समझेगा , तब तक वह संसार में अपनी महानता का प्रदर्शन कैसे कर सकता है ? और महानता तो ऐसी होनी चाहिए कि चेहरे से टपके, बातचीत में छलके और जीवनी लेखक उनकी महानता के सामने डरते – डरते नतमस्तक हो जाए । कुछ भी लिखने से पहले आदमी चार बार सोचे कि मैं एक महान आदमी की जीवनी लिख रहा हूँ।
कई लोग जेब में सर्टिफिकेट लेकर घूमते हैं। उनके पास सबूत होते हैं ,जिसके आधार पर वह अपने आप को महान बताते हैं। मजाल है कि कोई आदमी संदेह पैदा कर सके कि अमुक सज्जन महान नहीं हैं। अगर कोई गलती से भी चुप रहा ,तब महान व्यक्ति उसको तुरंत टोक कर बता देते हैं कि भाई साहब आपको क्या जानकारी नहीं थी कि मैं महान व्यक्ति हूँ। आपको कहना चाहिए था कि हम एक महान व्यक्ति से बातचीत कर रहे हैं ,और वह वास्तव में बहुत महान हैं।
महानता के मामले में व्यक्ति को आत्मनिर्भर होना चाहिए । यह नहीं कि सीधेपन में जिंदगी गुजार दी और मरने के बाद कोई महान कह ही नहीं रहा है । परेशानी से बचने के लिए आदमी को अपने जीवन – काल में ही अपने नाम के आगे महान लिख लेना चाहिए अर्थात “महान श्री अमुक जी” । इससे हमेशा पता चलता रहेगा कि अमुक सज्जन एक महान व्यक्ति हैं। नाम से पहले महान शब्द जोड़ने से बहुत से लोग यह तो कह सकते हैं कि आदमी अपना प्रचार खुद कर रहा है लेकिन इस बात में शक की गुंजाइश बिल्कुल नहीं रहेगी कि महान व्यक्तियों की श्रेणी में किस-किस को रखा जाए । जब महान व्यक्तियों की सूची बनेगी , तब सबसे पहला ध्यान उन लोगों पर ही जाएगा जिन्होंने अपने जीवन काल में सारी जिंदगी अपने गले में इस बात की तख्ती लटका रखी थी कि “मैं महान हूँ।”
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लेखक : रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
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