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20 Aug 2022 · 1 min read

कैसी ख्वाईश अब

जमाने को देख लिआ इतने करीब से
कि अब कोई गुंजाइश बाकी नहीं रही
मतलब तक ही सीमित रहता है हर कोई
इनके संग जीने की अब कोई बात ही नहीं रही !!

रोक नहीं सकता है कभी कोई भावनाओं को
यह तो धारा की भांति बह जाया करती हैं
समेट कर ले जाती हैं यादों को सब की
अब किसी से प्यार वाली बात ही नहीं रही !!

आंसुओं का सैलाब कुछ पल जिन्दा रहता है
लोगों से अब वो प्यार वाली बात ही नहीं रही
जमाना इस कदर मतलबी हो गया है “अजीत”
अब तो किसी से मेरी कोई तकरार ही नहीं रही !!

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

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