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12 Aug 2022 · 1 min read

ख़्वाहिश पर लिखे अशआर

बे’सुध सी ख़्वाहिशों का कैसा खुमार है ।
तू सामने है फिर भी तेरा इंतज़ार है ।।

ख़्वाहिश कोई अधूरी बाकी हो ज़िंदगी की ।
उम्र-ए-तमाम पर जैसे तमन्ना हो ज़िंदगी की ।।

टूटे ख़्वाबों की ज़मीन पर अक्सर ।
ख़्वाहिशों के मज़ार होते हैं ।।

मेरी आंखों का कोई ख़्वाब सा ।
मेरी ख़्वाहिशों का कोई जवाब सा ।।
वो मिला है मुझको इस तरह ।
मेरी नेकियों का कोई सवाब सा ।।

मेरी ख़्वाहिश में बे’तहाशा हो ।
हम तुम्हें भूल कैसे सकते हैं ।।

ख़्वाहिश-ए-एतमाद की ज़िद में ।
दिल का कोई यकीन टूटेगा ।।

ख़्वाबों की तेरी दुनिया हक़ीक़त से दूर है ।
ला’हासिल ख़्वाहिशों की तमन्ना फ़िज़ूल है ।।

दर्द की पूछ न वजह हमसे ।
तेरी ख़्वाहिश भी दर्द देती है ।।

डाॅ फौज़िया नसीम शाद

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