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12 Aug 2022 · 1 min read

अजब मुहब्बत

अजब मुहब्बत

ग़ज़ब मुहब्बत

न मुल्क देखे

ना सरहादो को

ना ताज देखे

न बादशाहत

ना दौलतो को

ना नफ़रतों को

अजीबतर सा नशा है इस्का

जिसे चढ़ा तो उतर न पाया

मगर सिफत ये भी है इस्की

के हर किसी को ये मिल ना पाये

जो इस को चाहे वो इस्को पाए हैं

नसीब इसका ये नहीं है

मगर……………..

कभी कभी अचानक

ये मिल भी जाती है

खुद बा खुद ही

तबी तो इसे कहते हैं हम सब

अजब मुहब्बत ग़ज़ब मुहब्बत…..!!!शबीनाज़

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