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11 Aug 2022 · 1 min read

सावन

काँधे पर बादल लटकाए,
गलियों गलियों घुमे सावन
पूछ रहा पथराई आँखों
वाले प्रेमी कहां मिलेंगे ?

मुझे नहीं लालसा सजीली कोरों में बूंदे अटकाऊं,
मुझे नहीं है कोई ख्वाहिश, भीगी हुई ज़मीं नहलाऊँ,

अधभीगे आषाढ़ी मन में
कैसे ठहर सकेगा सावन
पूछ रहा जो सूख चुके हों
झेल सुनामी कहां मिलेंगे ?

भादों कातिक जल लेते हैं, ताल, समंदर, नदिया तल से
लेकिन मैं सावन संचित हूँ, दग्ध प्रेमियों के दृग जल से।

झाँक रहा हर एक झरोखा
ओरोनी से लटका सावन,
पूछ रहा मैं जिनकी कहता
रहा कहानी कहाँ मिलेंगे ?

मैं तो केवल सहित सूद के कर्ज़ चुकाने आ जाता हूं।
जिन आँखों का ऋणी रहा हूँ, उन्हें भिगोने आ जाता हूँ।

प्यासे मन को गंगाधर का
शीतल संदेशा है बादल ,
पूछ रहा जो गरल पी गए,
वो ईमानी कहाँ मिलेंगे ?
– शिवा अवस्थी

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